संघर्ष से सफलता तक का सफर
झारखंड के खूंटी ज़िले के एक छोटे से संथाली आदिवासी गाँव “केलो” से ताल्लुक रखने वाली मीरा देवी आज एक सफल बांस हस्तशिल्प उद्यमी के रूप में जानी जाती हैं। कभी पारंपरिक कौशल को केवल एक पारिवारिक विरासत मानने वाली मीरा ने न सिर्फ़ उसे अपनी पहचान बनाया, बल्कि उसी के दम पर कई अन्य महिलाओं की ज़िंदगी भी संवारी।
कोविड काल बना बदलाव की शुरुआत
बचपन से ही मीरा को पारंपरिक बांस हस्तशिल्प की जानकारी थी, जो पीढ़ियों से उनके समुदाय में चली आ रही थी। वे झारखंड के विभिन्न हाटों और शिल्प मेलों में हिस्सा लेती थीं, लेकिन उसे एक व्यवसाय के रूप में अपनाने की कभी नहीं सोची थी। फिर आया कोविड-19 का दौर, जब मेलों और प्रदर्शनियों पर रोक लग गई। यही वह मोड़ था जब मीरा ने निर्णय लिया कि वे खुद का हस्तशिल्प की दुकान खोलेंगी। खूंटी में खोली गई यह दुकान उनके उद्यमी सफर की पहली ईंट थी।
एक सुनहरा मौका: कौशल विकास प्रशिक्षण
फरवरी 2018 में मीरा के जीवन में एक बड़ा अवसर आया, जब टोरपा रूरल डेवलपमेंट सोसाइटी फॉर वूमेन (TRDSW) और एडलगिव फाउंडेशन द्वारा बांस शिल्प पर आधारित कौशल विकास कार्यक्रम शुरू किया गया। पहले से ही बांस बुनाई की बुनियादी जानकारी रखने वाली मीरा ने इस प्रशिक्षण में भाग लिया। इस प्रशिक्षण ने न केवल उनके तकनीकी कौशल को निखारा, बल्कि उनमें आत्मविश्वास भी भरा।
उन्होंने सीखा कि कैसे बांस की साधारण टहनियों को सुंदर, आकर्षक और उपयोगी हस्तशिल्प उत्पादों में बदला जा सकता है। पारंपरिक तकनीकों के साथ आधुनिक डिज़ाइनों को जोड़कर वे अपनी कला में एक नया आयाम लाईं।
बांस शिल्प में निपुणता और रचनात्मकता का संगम
प्रशिक्षण समाप्त होने के बाद भी मीरा ने रुकना नहीं चुना। उन्होंने उन्नत प्रशिक्षण लेकर प्राचीन डिज़ाइन और सजावटी बांस शिल्प बनाना सीखा। उनकी कलाकृतियों में अब पारंपरिकता के साथ-साथ नवाचार और आधुनिकता की झलक भी मिलने लगी। टोकरियाँ, फर्नीचर, सजावटी वस्तुएँ—हर एक कृति में उनकी सृजनशीलता और संस्कृति की गहराई झलकने लगी।
व्यवसाय की शुरुआत और महिलाओं को सशक्त बनाना
मीरा देवी ने खूंटी में अपनी बांस शिल्प की दुकान शुरू की, जो धीरे-धीरे स्थानीय ग्राहकों और पर्यटकों के बीच लोकप्रिय होने लगी। उनके उत्पादों की सुंदरता और मौलिकता ने सभी का ध्यान खींचा। लेकिन मीरा की सफलता केवल व्यक्तिगत नहीं रही—उन्होंने अपने गांव की दूसरी महिलाओं को भी इस कला में प्रशिक्षित किया।
उन्होंने दिखाया कि सही प्रशिक्षण, आत्मविश्वास और मेहनत से कोई भी महिला आत्मनिर्भर बन सकती है। आज कई महिलाएँ उनके साथ जुड़कर न केवल इस शिल्प में दक्ष हो रही हैं, बल्कि खुद का व्यवसाय भी शुरू कर चुकी हैं।
एक उज्ज्वल भविष्य की ओर
मीरा देवी की कहानी इस बात का प्रमाण है कि जब परंपरागत ज्ञान को आधुनिक तकनीकों और व्यवसायिक सोच के साथ जोड़ा जाए, तो असाधारण परिणाम सामने आते हैं। वे आज न केवल एक कुशल शिल्पकार हैं, बल्कि एक सामाजिक परिवर्तन की अग्रदूत भी बन चुकी हैं।
उनकी कहानी यह संदेश देती है कि कौशल विकास कार्यक्रम केवल प्रशिक्षण का जरिया नहीं, बल्कि सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता की दिशा में एक सशक्त कदम हैं। मीरा का संघर्ष, सफलता और समाज के लिए योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा।